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नेतृत्व पर बगावत


PTI

1986 में पंकज उदास द्वारा गाए गए गीत "चिट्ठी आई है" के बोल आज कांग्रेस पार्टी के वर्तमान हालात को दर्शाने के लिए काफी हैं घटनाक्रम शुरू होता है जब 2019 में लोकसभा चुनाव की हार के बाद गहरी नींद में सोई कांग्रेस के कानों में एक जोरदार विस्फोट होता है, वजह बनती है कांग्रेस के 23 दिग्गज नेताओं द्वारा हस्ताक्षर की गई एक चिट्ठी, जिसमें एक स्थाई और पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग की जाती है। गुलाब नबी आजाद, शशि थरूर, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल जैसे नेताओं द्वारा खत लिखना कांग्रेस में चल रही आंतरिक कलह की तरफ़ इशारा करता है।


राजस्थान में हुए सचिन पायलट और राजस्थान के वर्तमान सीएम अशोक गहलोत के बीच बवाल ने कांग्रेस में ओल्ड लॉबी बनाम यंग लॉबी की जंग को सभी के समक्ष ला दिया था। और अब यह चिट्ठी का सामने आना कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी करता है। दरअसल कांग्रेस अपनी हालत के पीछे खुद ही जिम्मेदार है। कई सवाल हैं जो आज कांग्रेस के समक्ष 'यक्ष प्रश्न' जैसे प्रतीत हो रहे हैं।


पहला सवाल तो यह है कि लगभग लोकसभा चुनाव के 1 साल बाद तक भी कांग्रेस एक स्थाई अध्यक्ष क्यों नहीं ढूंढ पाई? यदि श्री राहुल गांधी इच्छुक नहीं थे तो कांग्रेस पार्टी ने विकल्प तलाशने की कोशिश क्यों नहीं की? क्या कांग्रेस पार्टी में गैर गांधी परिवार के किसी व्यक्ति के अध्यक्ष बनने की कोई संभावना है?  ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार से बाहर अध्यक्ष नहीं हुए किंतु उनका कालखंड और निर्णय लेने की क्षमता सदैव सीमित ही रही है। किसे याद नहीं है कि सीताराम केसरी का क्या हाल हुआ था, पीवीआर नरसिम्हा राव के शव को कांग्रेस सचिवालय में किन लोगों ने नहीं आने दिया था।


यह बात सर्वविदित है कि कांग्रेस पार्टी में नेहरू-गांधी परिवार का वर्चस्व रहा है। कई नेताओं का तो यह भी मानना है की गांधी परिवार ही पार्टी है। पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी। पार्टी के प्रमुख चेहरे एक ही परिवार के इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं। ऐसा नहीं है कि