top of page

यथा राजा तथा प्रजा : दास्तान – ऐ – COVID 2.0

“ दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे– मारे लोग

जो होता है सह लेते है कैसे हैं बेचारे लोग ..

नेकी इक दिन काम आती है हम को क्या समझाते हो

हम ने बे-बस मरते देखे कैसे प्यारे प्यारे लोग "

~ जावेद अख़्तर


हिंदुस्तान के अंदर कोरोना की दूसरी लहर ने अनेक कड़वे सच हमारे सामने लाकर रख दिए है । एक अधिनायकवादी सत्ता की तरफ़ बढ़ रहे, और अपने लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल उठने के बाद, अब हिंदुस्तान के सामने कई सारे और सवाल खड़े हो गए है । वर्तमान में सैद्धांतिक नहीं तो कम से कम व्यावहारिक सत्य तो यही है कि भारत में सत्ता ही संविधान है । व्यक्तिपूजा की पराकाष्ठा है कि आज सत्ता की अनुचित नीतियों के कारण हो रही हत्याओं को कोरोना से मौत करार दिया जा रहा है । देश में कोरोना की दूसरी लहर ने हाहाकार मचा दिया है । हर दिन कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या अपना ही रिकॉर्ड तोड़ रही है और देश की स्वास्थ्य सेवाओं की सांस फूलने लगी है ।


ऐसे में सवाल यह है की बीते एक साल में केंद्र व राज्य सरकारों ने इससे निपटने के लिए क्या किया? जवाब है कि माननीय प्रधानमंत्री जी तो भूटान भ्रमण, चुनाव प्रचार, हिंदुत्व प्रचार आदि में अति व्यस्त थे । उनके बाक़ी मंत्री भी कुछ इसी तरह के कार्यों में व्यस्त थे । शायद ये सब हमारी आपकी जानों से बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण थे । पिछले साल देश की सवा सौ करोड़ की जनता को तालाबंद कर दिया गया और कहा गया कि इस दौरान सरकार स्वास्थ्य संरचना को सुदृढ़ करेगी । आज एक वर्ष से अधिक हो गए , और हालात अब भी ज़्यादा बदले नही लगते । सरकार की तत्परता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछली तालाबंदी के बाद सरकार को ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए कंपनियों से सौदा करने के लिए 8 महीनों का वक़्त लगा । जो थोड़ी बहुत ऑक्सीजन बन पायी , उसे भी बाहर भेज दिया गया । उनके कठिन परिश्रम के परिणामस्वरूप हालात ये हैं कि दूसरी लहर ने जब अपना असर दिखाना शुरू किया तो देश की स्थिति ने भयावह रूप धारण कर लिया । एक कहावत है कि समझदार अपने अतीत से शिक्षा लेतें हैं , लेकिन हिंदुस्तान के अंदर समझदारी नामक वस्तु का अस्तित्व संकट में दिख रहा है । ये वाला वाइरस, पिछले साल के मुक़ाबले बहुत अधिक संक्रामक है । इस संक्रमण के सामने पिछले साल का संक्रमण बच्चों के खेल जैसा लगता है । बीबीसी हिन्दी के इस ग्राफ़ को देख कर हालात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है ।

स्त्रोत: बीबीसी हिन्दी


29 जनवरी 2021 को डेविस फ़ोरम में बोलते हुए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने ये एलान किया कि हिंदुस्तान ने कोरोना के विरुद्ध जंग को जीत लिया है । ताज्जुब की बात ये है कि जिस वक़्त उन्होंने ये बात कही, उस समय भारत में लगभग 11,000 केस प्रतिदिन आ रहे थे और देश में कुल सक्रिय मामलों की संख्या लगभग 3 लाख थी । इसके लगभग एक हफ़्ते बाद, उन्होंने यही बात देश की संसद में भी दोहरायी । दोनों ही जगहों पर भरपूर तालियों से इस बात का स्वागत किया गया । इसके लगभग एक महीने बाद, मार्च के आरम्भ में माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री हर्षवर्धन ने ऐलान किया कि भारत में कोविड-19 महामारी ‘अब ख़ात्मे की ओर‘ बढ़ रही है । माननीय प्रधानमंत्री जी और स्वास्थ्य मंत्री जी के इस दावे की सच्चाई आज हमारे सामने है । प्रधानमंत्री का ये बयान अपने आप में इस बात का द्योतक है कि उन्होंने ये मान लिया था कि कोरोना अब भारत से जा चुका है !

सुनने में अजीब लगेगा, लेकिन भारत में कोरोना की दूसरी लहर को न्योता देकर बुलाया गया । मामलों में गिरावट होने पर देश के लोगों ने खुद को पूर्ण रूप से कोरोना के नियमों से अलग कर लिया, और कोरोना के मामले धीरे धीरे फिर बढ़ने लगे । इन बढ़ते मामलों के बावजूद, मध्य मार्च में गुजरात के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में भारत और इंग्लैंड के मध्य क्रिकेट मैच खेले गए। स्टेडियम में लगभग 57 हज़ार लोगों को जाने की इजाज़त दे दी गयी । इसके कुछ ही दिनों बाद गुजरात में हालात बिगड़ने लगे । इसके बाद भी सरकार और लोगों को होश नहीं आया । कोरोना की दूसरी लहर के भयंकर रूप को सबसे पहले महाराष्ट्र ने देखा । महाराष्ट्र में कोरोना दोबारा फ़ैलने की दो मुख्य कारण हैं । पहला है आम लोगों के लिए लोकल ट्रेन का संचालन , जिसने की मुम्बई और पुणे जैसे शहरों में कोरोना को बढ़ावा देने का काम किया । दूसरा कारण है ग्राम पंचायत चुनाव , जिसने की विदर्भ और मराठवाड़ा जैसी जगहों पर कोरोना संक्रमण को गति प्रदान कीफ़रवरी के मध्य से ही हालात बिगड़ने शुरू हो गए थे , इसके बावजूद भी पूरे फ़रवरी और मार्च के महीने में कोरोना से लड़ने के लिए बनाई गई कोविड टास्क फ़ोर्स ने एक भी बैठक नहीं की । शायद उन्हें सुध ही नही थी । यदि उस वक़्त तक भी हम संभल जाते तो शायद हालात इतने ना बिगड़ते, लेकिन ऐसा हुआ नहीं ।


दो ऐसी घटनाएं हुईं, जिसने दुनिया भर के बुद्धिजीवियों के होश उड़ा दिए । यह दो घटनाएं थी चुनाव और कुंभ मेले का आयोजन । सोचने की बात है कि क्या सरकार के जानकार सलाहकारों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों आदि ने प्रधानमंत्री को चेतावनी नहीं दी होगी? लेकिन लोगों की जान से मज़ाक़ करके चुनाव और कुंभ दोनों कराए गए । फ़रवरी के आखिर में चुनाव आयोग ने पाँच राज्यों में विधानसभा चुनावों का ऐलान कर दिया । कुल मिलाकर 824 सीटों पर चुनाव का ऐलान हुआ जिनमें कुल मिलाकर 18.60 करोड़ मतदाताओं को मतदान करना था । जब चुनाव आयोग को ये नज़र आ रहा था कि कोरोना से लोगों की जानें जा रही हैं, इसके बाद भी चुनाव क्यों नहीं रोके गए? लोकतंत्र का उत्सव ‘लोकहत्या’ कर रहा था, लेकिन कुछ नहीं रुका । तमाशा चलता रहा और कठपुतलियाँ नाचती रहीं । चुनावी सभाओं में कोरोना के नियमों का धड़ल्ले से उल्लंघन होता रहा । सारे नेता रैलियाँ करने में जुट गए । देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, विपक्ष के नेता सब प्रचार में जुट गए । एक बात ध्यान देने लायक है कि संक्रमण होने के लगभग डेढ़-दो हफ़्तों बाद कोरोना के लक्षण सामने आते है । इसलिए , अप्रैल के शुरुआत में की गयी रैलियों का नतीजा अप्रैल के आखिर में दिखना शुरू हुआ और कोरोना ने सारी हदें पार कर दी । आने वाली पीढ़ियां ये देख कर हैरान हो जाएँगी की जिस वक़्त हिंदुस्तान के लोग एक-एक साँस के लिए संघर्ष कर रहे थे, जहाँ एक तरफ़ एक ग़रीब आदमी को मास्क ना लगाने के लिए 2000 रुपयों का जुर्माना और पुलिस के डंडे खाने पड़ रहे थे, उसी वक्त देश के प्रधानमंत्री और अन्य नेतागण लाखों की भीड़ संबोधित कर रहे थे और अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए लाखों लोगों की जान को संकट में डाला जा रहा था । इन चुनावों ने कोरोना की दूसरी लहर को एक तेज़ गति प्रदान करने का काम किया । लेकिन ये नरसंहार यहीं नहीं रुका ।


स्त्रोत: EconomicTimes/Yahoo


इस संहार की गति को कई गुना बढ़ाने का काम किया हरिद्वार में आयोजित कुंभ ने । लगभग 40 लाख लोगों ने इस वर्ष कुंभ मेले में हिस्सा लिया । 10-15 अप्रैल के बीच कुंभ में लगभग 2,000 लोग रैपिड टेस्ट और RT-PCR टेस्ट के माध्यम से कोरोना संक्रमित पाए गए । ध्यान रहे कि इस नए कोरोना की जाँच में रैपिड टेस्ट सिर्फ़ 50% कारगर है । मतलब ये कि कई हज़ार ऐसे होंगे जिनकी जाँच नहीं हुई, और हज़ारों ऐसे जो संक्रमित होने के बाद भी जाँच में नहीं आ पाए । अब सोचिए की कुम्भ में मौजूद कितने लोगों तक ये संक्रमण पहुँचा होगा, और उन लोगों ने इसे देश के कोने कोने में ले जाने का कार्य किया होगा । पिछले साल एक राहत की बात थी कि कोरोना गाँवो में ज़्यादा भयंकर रूप से नहीं फैला था । चूँकि कुंभ मेले में लाखों श्रद्धालु उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान इत्यादि के गाँवो और छोटे शहरों से आते हैं, इस प्रकार उनके वापस लौटने से कोरोना के संक्रमण का गाँवो में भी फैलना निश्चित था । आज ये भयावह महामारी देश के कोने कोने में अपनी जड़े जमा चुकी है । वास्तविकता में संक्रमण और मौतें सरकारी आँकड़ों से लगभग बीस गुना अधिक हैअप्रैल के आरम्भ में जब महामारी अपनी जड़ें जमा रही थी , उस वक़्त सरकार ने वैक्सीन और ऑक्सीजन की बजाय 325 करोड़ रुपये हरिद्वार में कुंभ के लिए "विशेष सहायता" के रूप में आवंटित किये । भारतेंदु हरिशचंद्र के एक नाटक का कथन याद आता है, “अंधेर नगरी, अनबूझ राजा । टके सेर भाजी, टके सेर खाजा” । 17 अप्रैल को माननीय प्रधानमंत्री ने ट्वीट करके कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण कुंभ को ‘प्रतीकात्मक’ ही रखने की अपील की । लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी । इसके बाद श्रद्धालु अपने-अपने घरों को लौट गए, जिसके कुछ ही दिनों बाद देश ने एक दिन में 3,50,000 मरीज़ों का आँकड़ा पार किया ।


कोरोना की दूसरी लहर ने भारत को जकड़ लिया है और चारों तरफ़ मातम छाया है। मानवीय संबंध टूट रहे हैं, उनके रुदन से आत्मा तक कराह उठी है। क्योंकि अस्पतालों में बेड नहीं है, ऑक्सीजन की आस में लोग दम तोड़ रहे हैं । लोग कोरोना की वजह से कम और ऑक्सीजन की कमी से ज़्यादा मर रहें है । मरीज़ों को अस्पतालों में भर्ती नहीं मिल रही है, और अगर मिल भी जाए तो उनके परिजनों से एक फ़ॉर्म पर दस्तखत कराए जा रहे है । फ़ॉर्म में ये लिखा होता है की यदि मरीज़ की मृत्यु हो जाए तो हॉस्पिटल की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है क्यूंकि ना ऑक्सीजन है ना वेंटिलेटर । यदि बिना ऑक्सीजन के कोई मर जाता है तो ये सरासर हत्या है और कुछ नहीं ।


कोरोना की दूसरी लहर ने भारत की स्वास्थ्य संरचना के परखच्चे उड़ा के रख दिए है । इस बात में कोई शक नहीं की हिंदुस्तान के लोगों ने कभी भी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मतदान नहीं किया है , लेकिन फिर भी भारत जैसे देश में हालात इतने भी बदतर नहीं होने चाहिए थे , जितने इस समय है । बीते कुछ महीनों में भारत ने अपने देश में बनी वैक्सीन का भरपूर निर्यात किया । सवाल ये है की ऐसा क्यों किया गया ? स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कोरोना की दूसरी लहर की आशंका बहुत बार जतायी थी । हालांकि इस बात का शायद उन्हें भी अंदाज़ा नहीं था की ये दूसरी लहर इतनी ज़्यादा ख़तरनाक होगी । ऐसे में , जब वैक्सीन अभी एक-चौथाई हिंदुस्तान के लिए भी तैयार नहीं थी, तो ऐसे में उसे दूसरे देशों में भेजना एक सही फ़ैसला नहीं लगता ।


ख़ैर, इसके बहुत सारे कूटनीतिक पक्ष है, जो हमारी समझ से बाहर है । हो सकता है सरकार की कुछ नैतिक मजबूरियाँ रहीं हो । इस मुद्दे पर दिए गए तर्क, पूर्णतः तो नहीं लेकिन कुछ हद तक सत्यापित किए जा सकते है । वैक्सीन के साथ साथ ऑक्सीजन का भी भरपूर निर्यात किया गया । वाणिज्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार , अप्रैल 2020 और जनवरी 2021 के बीच भारत ने 9000 मेट्रिक टन ऑक्सीजन विदेश भेजा । जनवरी 2020 में भारत ने 352 मेट्रिक टन ऑक्सीजन निर्यात किया था । ध्यान देने वाली बात ये है की कोरोना महामारी के बीच जनवरी 2021 में पिछले साल की तुलना में भारत का ऑक्सिजन निर्यात 734 % बढ़ गया । सरकार की तरफ़ से कई बार ये कहा गया कि निर्यात की गयी ऑक्सीजन दरअसल औद्योगिक ऑक्सीजन थी और इसका स्वास्थ्य सुविधाओं में प्रयोग की जाने वाली ऑक्सीजन से कोई लेना देना नहीं है । लेकिन अभी हाल के दिनों में हमने देखा कि कई सारी औद्योगिक गतिविधियों को रोक के औद्योगिक ऑक्सीजन को ही अस्पतालों तक पहुँचाया गया और हज़ारों मरीज़ों को इसी ऑक्सीजन से साँसें मिली ।


सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद श्री अनुपम मिश्र जी कहा करते थे की “अकाल कभी चुपचाप नहीं आता । वह बिना तिथि बताए आने वाला अतिथि नहीं है । अकाल से बहुत पहले अच्छे कामों का, अच्छे विचारों का अकाल आता है ।” ऑक्सीजन का अकाल भी अपने आप नहीं आया है । सरकारी अहंकार, अति-राष्ट्रवाद और नाकाम ब्यूरोक्रेसी ही आज लोगों के रोने-बिलखने का कारण है। यह कहना ग़लत नहीं होगा की यह सब सिर्फ़ लापरवाही का नतीजा है । यह लापरवाही जितनी सरकारों की है उतनी ही जनता की भी है । जब लोगों ने यह देखा की उनके प्रधानमंत्री लाखों लोगों की भीड़ जुटा कर सभा सम्बोधित कर रहे हैं, और इधर कुंभ में कई लाख लोग स्नान कर रहे है और उन्हें कोई नहीं रोक रहा है, तो उन्हें लगने लगा की अब हालात सामान्य हो चुके है । उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग करना अनुचित समझा और इस प्रकार ‘यथा राजा तथा प्रजा’ को चरितार्थ किया गया ।


स्त्रोत: ThePrint


इस संकट से निकलना कैसे है, यह बताने के लिए देश में कई सारे विद्वान मौजूद है । सरकार को दलगत राजनीति छोड़कर तत्काल उनसे संपर्क करके सलाह लेना चाहिए । इसके अलावा सभी विपक्षी दलों और सरकार को मिलकर काम करना होगा । यदि अभी भी राजनीति की गयी तो हिंदुस्तान अपनी गरिमा से हाथ धो बैठेगा । जो हज़ारों करोड़ रुपए , लोगों ने ‘PM केयर’ फंड में दान किए है उसका सदुपयोग करना चाहिए । जनता के उस पैसे को RTI से बाहर तो कर दिया आपने, लेकिन अब कम से कम उस पैसे से लोगों की ज़िंदगी तो बचाइए । सबसे ज़रूरी बात यह कि भारत को इस वायरस पर समय से पहले जीत के ऐलान से परहेज़ करना सीखना होगा। इसी जीत की भावना और अति-उत्साह की प्रवृत्ति ने आज हमें संकट में ला खड़ा किया है । इस कठिन समय में कई लोग मानवता की मिसाल बनकर सामने आए है, जो ज़रूरतमंद लोगों को दवा, ऑक्सीजन, भोजन इत्यादि मुहैया करा रहे है । इस मुसीबत से उभरने के लिए, कई सारे दूसरे देशों ने भी भारत की ओर मदद का हाथ बढ़ाया है । कहते हैं न “साथ रोना, साथ हंसने से बड़ी चीज है“ । एक अच्छे कल की उम्मीद करते हुए, यह पंक्तियाँ ज़हन में आती हैं,


“ तिनके तिनके में बिखर कर

हम बसाएँगे उजड़ कर

एक ख़ुशियों का नया घर

उस प्रलय के आते आते

तय हुआ है जाते जाते ”

 

By Aryan Pandey and Nandini Giri

आर्यन पाण्डेय हिन्दू महाविद्यालय , दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी से स्नातक की पढ़ाई कर रहे है । पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक छोटे गाँव से ताल्लुख़ रखने के कारण , ग्रामीण भारत के मुद्दों में उनकी ख़ासी दिलचस्पी है । इसके अलावा , सामाजिक , राजनैतिक और पर्यावरणीय न्याय से संबंधित मुद्दों में इनकी रुचि रही है ।


नंदिनी- बिहार के वैशाली जिले से हूं। गांवों के समीप रहती हूं। प्रकृति के निकट रहना पसंद है और हिंदी से बेहद प्यार है । किताबों से प्यार है ख़ासकर प्रेम की किताबों से प्रेम है। शांत स्वभाव है ।

38 views0 comments

Comments


bottom of page