असम संकट
- Hindu College Gazette Web Team

- Jul 7, 2023
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'असम' भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित एक राज्य, जो काफ़ी लंबे समय से अपने संसाधनों, अपने अधिकारों और अपनी ज़मीन के लिए संघर्ष कर रहा है। 'असम ' जिसका शाब्दिक अर्थ 'एक ऐसी भूमि जो समतल नहीं है' है जो कि इसकी भौगोलिक परिस्थितियों से मेल खाता है। असम, जो पहले कभी अपने चाय और कॉफी के सीढ़ीनुमा बागानों के लिए प्रसिद्ध हुआ करता था, आज अपनी संस्कृति और विरासत को बचाने में प्रयासरत है। असम के इस संकट का एक बड़ा कारण है - अवैध प्रवास, जिसके कारण आज असम के लोग असम में ही अल्पसंख्यक बन चुके हैं। चाहे भारत का हिस्सा (बंगाल), चाहे आज़ादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान कहिए या 1971 के बाद का बांग्लादेश, यहॉं से एक बहुत बड़ी संख्या में लोग अलग-अलग कारणों के चलते भारत आते रहे हैं। आज स्थिति यह है कि असम ने जिन लोगों को आश्रय दिया वे ही आज उनके संसाधनों पर अधिकार करके बैठ गये हैं। यह समस्या केवल असम की ही नहीं बल्कि देश की सुरक्षा की भी है क्योंकि आज बांग्लादेश की सीमा से लगने वाले इलाकों में अप्रवासियों की संख्या बढ़ती जा रही है तथा एस. के. सिन्हा की रिपोर्ट ‘असम में अवैध अप्रवास , 1998 ’के अनुसार वह दिन भी ज्यादा दूर नहीं जब इन इलाकों में आज़ादी या बांग्लादेश विलय जैसे आंदोलन शुरु हो जायेंगे ।

Courtesy: Himalmag
इसकी शुरुआत ब्रिटिश काल से होती है। 1831 में चाय के व्यवसाय को विश्व व्यापार बढ़ाने हेतु लोगों की आवश्यकता थी; तब अंग्रेजों ने तत्कालीन बंगाल के लोगों को असम में कृषि कार्य करने के लिए भेजा और उनकी संख्या समय के साथ बढ़ती गयी। इसके ऊपर सबसे पहले चिंता 1931 में मुख्य जनगणना आयुक्त जे. एच. हटन ने व्यक्त की और सरकार को इस स्थिति के बारे में अवगत कराया । स्वतंत्रता पश्चात नेहरू जी ने इस मुद्दे पर ज़ोर देते हुए 1950 में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को बाहर निकालने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ एक संधि (नेहरू-लियाकत समझौता) की तथा उसमें धार्मिक प्रताड़ना को सम्मिलित ना करते हुए अल्पसंख्यकों को आने की छूट दी गयी। पूर्वी पाकिस्तान में शुरूआत में भाषा को लेकर तथा बाद में आज़ादी को लेकर आंदोलन होने लगे। उन आंदोलनों का दमन करने के लिए पश्चिमी पाकिस्तान ने बेहद निर्दयी तरीके अपनाये तथा 1971 के अंत तक बहुत बड़ी संख्या में लोग आर्थिक कारणों, तथा अपनी प्राणों को बचाने के लिए भारत आ गए। 1978 में विधान सभा की एक सीट पर चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने इस बात का दावा किया कि क्षेत्रीय नेताओं के दबाव में आकर उन्होंने लगभग 40 लाख अवैध अप्रवासियों का नाम मतदाता सूची में जोड़ दिया है जिससे सम्पूर्ण असम में विद्रोह की भावना उत्पन्न हो गयी तथा 1979 में हुए लोकसभा चुनाव का विरोध करते हुए 14 मे से 11 सीटों पर चुनाव नहीं होने दिया। इन्दिरा गांधी सरकार ने बाद में 1983 विधान सभा चुनाव को करवाने के लिए सेना की सहायता ली पर उन्हें इस बात की भनक नहीं थी कि इससे लोग कितने आक्रोशित हो सकते थे। असम के क्षेत्रीय लोग नैली और उसके आस-पास के गाँव जहाँ बांग्लादेशी लोग रहते थे , वहॉं एकत्रित हुए तथा एक प्रहर से भी कम समय में विश्व के आगे एक जनसंहार को प्रत्यक्ष किया। इसमें सरकारी आँकड़े के अनुसार 2191 लोग मारे गये तथा इस घटना ने देश और सरकार को हिला कर रख दिया। इसके बाद सभी सरकारों ने इस समस्या को हल करने की बहुत कोशिशें की परन्तु असफल रहे।
अवैध अप्रवास एक बहुत बड़ी समस्या थी जो आज़ादी से पहले चलती आ रही थी । नेहरू जी इस समस्या से अवगत थे। उन्होंने इस पर कार्यवाही करते हुए 1950 में बांग्लादेशी लोगो को बाहर निकलने के लिए नियम बनाया तथा नेहरू - लियाकत समझौते के अनुसार सिर्फ अल्पसंख्यकों को इस नियम से छूट दी। साथ ही में 1951 में जनसंख्या के साथ लोगो को बिना इस बात से अवगत कराये असम का पहला NRC करवाया।
नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स (NRC) सभी भारतीय नागरिकों का एक डेटाबेस है, जिसे 1955 के नागरिकता अधिनियम में 2003 के संशोधन द्वारा अधिकृत किया गया है। इसका लक्ष्य भारत के सभी वैध निवासियों का दस्तावेजीकरण करना है ताकि अवैध अप्रवासियों की जानकारी प्राप्त की जा सके ।
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) देश के सामान्य निवासियों का एक रजिस्टर है। यह नागरिकता अधिनियम 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र) नियम: 2003 के प्रावधानों के तहत स्थानीय (ग्राम / उप-टाउन), उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जा रहा है।
बाद मे शास्त्री जी ने भी इस बात पर जोर दिया लेकिन पाकिस्तान से युद्ध के कारण वे तब इस समस्या पर अधिक कार्य नहीं कर पाये । इन्दिरा गाँधी सरकार, जिसने पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराया, ने बांग्लादेश सरकार से समझौता किया तथा 1971 के बाद आये हुए लोगो को वापिस भेजने की बात कही। असम के लोग इससे बिल्कुल खुश नहीं थे। इन्दिरा गाँधी सरकार ने असम की समस्या को हल करने के लिये दिखावे मात्र के लिए एक नियम बनाया (IMDT एक्ट) जो कि असम की समस्या को हल करने की बजाय उसे और बढ़ा रहा था। 1983 में केन्द्र सरकार जो कि असम में चुनाव करवाने पर अडी थी तथा नैली जनसंहार , सरकार और असम के लोगों के मध्य इसी मतभेद का शर्मनाक उदाहरण बना। चूँकि IMDT एक्ट असम के लोगों के सिर्फ एक प्रलोभन मात्र था, 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। इस मुद्दे के राजनीतिक संबंध इस प्रकार देखे जा सकते है कि सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका लगाने वाले और कोई नहीं असम के 14 वें मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल थे। राजीव गाँधी ने असम के इस मुद्दे पर अधिक ध्यान देते हुए एक समझौता (असम समझौता,1985) किया जिसमे निम्न प्रावधान थे :-
जो लोग 1967 की मतदाता सूची में हैं उन्हे नागरिकता मिलेगी।
जो लोग 1/1/1966 के 25/3/1971 मध्य आये हैं उन्हें रजिस्ट्रेशन करवाना होगा तथा उन्हें 10 साल तक मतदान के अधिकार को छोड़कर सभी अधिकार भारत के नागरिक के समान मिलेंगे तथा 10 साल के बाद पूर्णत: भारत के नागरिक मान लिए जायेंगे।
25/3/1971 के बाद आये लोगों की पहचान करके उनके नाम मतदाता सूची से हटाकर उन्हे बाँग्लादेश वापस भेजा जायेगा ।
अब इन लोगों की पहचान करने के लिए असम में NRC आवश्यक हो गया। आज भारत सरकर ने जो CAA,2019 प्रस्तुत किया है
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसके द्वारा सन 1955 का नागरिकता कानून को संशोधित करके यह व्यवस्था की गयी है कि ३१ दिसम्बर सन 2014 के पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी एवं ईसाई को भारत की नागरिकता प्रदान की जा सकेगी।
यह भी असम की स्थिति को और अधिक बदतर कर रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के अधीन हुए NRC में यह पता चला कि बांग्लादेश से आये हुए 60% लोग हिन्दू है जो कि CAA के चलते भारत के नागरिक बन सकते हैं। चूँकि इसमें यह प्रावधान रखा गया कि यह नियम सेड्युल्ड क्षेत्रों तथा उन राज्यों पर लागू नहीं होगा जहाँ के लिए ILP (Inner Line Permit) लगता है
इनर लाइन परमिट (ILP) एक यात्रा दस्तावेज है जो आधिकारिक तौर पर संबंधित राज्य सरकार द्वारा जारी किया जाता है जो एक संरक्षित क्षेत्र में एक भारतीय नागरिक की आवक यात्रा की अनुमति देता है।
जिसके कारण यह नियम उत्तर-पूर्व के सभी राज्यों को छोडकर सिर्फ असम के 70% क्षेत्र, तथा त्रिपुरा के 8% क्षेत्र पर लागू होगा। इसके कारण अब अवैध अप्रवासी जो विभिन्न राज्यों में रह रहे हैं वे भी असम में आने का प्रयास कर रहे हैं , जिससे असम की समस्याएँ और बढ़ गयी हैं।
असम में CAA-NRC और NPR
भारतीय जनता पार्टी तथा भूतपूर्व जनता पार्टी अवैध अप्रवास पर हमेशा से ही अडिग विचारधारा के साथ निर्णय लेना चाहती थी । 2003 में CAA लाकर उन्होने यह सुनिश्चित किया कि अवैध अप्रवासी कौन है तथा उन्हें किसी भी नियम के अंतर्गत नागरिकता न मिल सके। इसमे सबसे रूचिकर बात यह थी कि वह कांग्रेस जो आज CAA का विरोध कर रही है; तत्कालीन विपक्ष डॉ. मनमोहन सिंह ने BJP सरकार के निर्णय पर सहमति जताते हुए यह सलाह दी थी कि अल्पसंख्यक, जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण आये है उनके लिए भी कुछ किया जाये। परन्तु आज वोट बैंक की राजनीति के कारण BJP सरकार चाह रही है कि लोगों को उनका यह बिल मुस्लिम विरोधी लगे और काग्रेस पार्टी मुस्लिम वोट बैंक के लिए इसका विरोध कर रही है। जैसा कि हम समझते हैं किसी बड़े समूह के खिलाफ कोई नियम लाना और उसे शांतिपूर्वक प्रयोग में लाना असंभव है। यही हुआ जब मनमोहन सिंह सरकार ने 2010 में असम के दो क्षेत्रों में प्रायः देखने के लिए NRC करवाने का प्रयास किया । परिणाम स्वरूप वहॉं NRC का इतने हिंसक तरीके से विरोध किया गया जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते| चूंकि असम समझौते में ‘NRC’ का जिक्र था ; असम के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में इसकी माँग की। कोर्ट ने सरकार की लापरवाही को देखते हुए NRC करवाने का दायित्व स्वयं लेते हुए (धारा 144 के अनुसार) सम्पूर्ण असम में NRC करवाया जिसका परिणाम 2019 में आया| इसमें अनुमानतः 1200 करोड़ रुपये खर्च हुए। इसकी रिपोर्ट अनुमानों से विपरित निकली क्योंकि अवैध अप्रवासियों की संख्या सिर्फ 19 लाख आयी । जैसा कि ज्ञात है आज भारत की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है तथा नकली दस्तावेज बनवाना कोई मुश्किल कार्य नहीं। इन्हीं कारणों से केन्द्र सरकार, असम सरकार तथा बहुत से संविधानविज्ञों का यह मानना है कि यह NRC विफल रहा। यह बात सत्य भी है क्योंकि काफी ऐसे मामले सामने आये जिसमे उन लोगो को भी NRC में शामिल किया गया जिन्हें विदेशी न्यायाधिकरण ने विदेशी नागरिक घोषित कर दिया था।
अंततः, अगर ध्यानपूर्वक देखा जाये तो यह एक बड़ी समस्या है जिसे जल्द से जल्द हल करना आवश्यक है । असम के लोग असम समझौते के नियमों की पालना चाहते हैं। असम या सम्पूर्ण देश में CAA, NRC और NPR का जो विरोध हो रहा है उसका सबसे बड़ा कारण जागरूकता की कमी है । लोगों को इनके नियमों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है तथा वे राजनीतिज्ञों के प्रभाव में आकर विरोध कर रहे हैं। अगर आज CAA असम को छोड़ सम्पूर्ण देश में लागू हो तो किसी को कोई समस्या नहीं होगी तथा देश के नागरिकों और प्रवासियों की सूचना रखना एक देश का अधिकार है। इनमें भी NPR एक ऐसी गणना है जो कि जनगणना के साथ ही हो जाती है जैसा कि 2010 में हुआ तथा 2020 में होना था लेकिन कोरोना के कारण नहीं हो पाया। जिन वक्ताओं का यह मत है की असम के NRC में 1200 करोड़ खर्च हुए तो देश में NRC करवाने के लिए कितने रूपए लगेंगे। परन्तु उन्होंने यह अभी तक देखा भी नहीं है कि ये सारी बातें जनगणना के साथ ही होने वाली है यह असम के NRC से बिल्कुल अलग है। जनगणना के फॉर्म में कुछ और बातें जैसे माता-पिता का जन्म स्थान, मोबाइल नंबर, आधारकार्ड नंबर आदि 7 और जानकारी जो कि स्वैच्छिक है, से NPR पूर्ण होगा तथा LR, SDR, DR अलग - 2 स्तरों पर इन आंकड़ों की जांच करके NRC का निर्माण करेंगे, जिसमें संदिग्ध व्यक्ति को 5 से 6 बार स्वयं को भारतीय नागरिक साबित करने के मौके दिये जायेगें। अत: परिणामत: देखा जाये तो NRC तथा NPR एक देश की ज़रूरत है तथा आवश्यक है । जिन्हें इन नियमों से कुछ शिकायतें हैं उन से संपर्क करना कठिन होता जा रहा है क्योंकि वोट बैंक की राजनीति करने वाले या नियमों एवं कार्यप्रणाली से अनजान लोग भी इनका विरोध कर रहे हैं। जो कि सही नहीं है। देश में कौन रह रहा है, कहाँ रह रहा है और क्या कर रहा है, देश का नागरिक है या विदेशी है इसकी पहचान होना तथा इसकी जानकारी होना एक अच्छे संवैधानिक देश की पहचान है।
कुणाल जोशी
कुणाल जोशी हिन्दू महाविद्यालय में गणित विषय में स्नातक के द्वितीय वर्ष के छात्र हैं।
संदर्भ :-
1.http://www.unipune.ac.in/chairs/St_Sawarkar_Chair/pdf/SK%20Sinha's%20REPORT_24.042020.pdf
2.https://www.drishtiias.com/daily-updates/daily-news-analysis/report-on-clause-6-of-assam-accord
6.https://www.aajtak.in/india/story/indira-gandhi-interview-on-nrc-bangladeshi-immigrants-congress-modi-government-558969-2018-08-02






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